दीपावली पर्व की शुरुआत, भगवान धन्वंतरि, मां लक्ष्मी और कुबेर देवता की पूजा का विधान।
धनतेरस क्या है और इसका महत्व
‘धनतेरस’ का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, जिसे ‘धनत्रयोदशी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पांच दिवसीय दीपोत्सव यानी दीपावली पर्व का पहला दिन होता है। ‘धन’ का अर्थ है संपत्ति या समृद्धि और ‘तेरस’ का अर्थ है तेरहवाँ दिन। इस दिन विशेष रूप से नई वस्तुओं, विशेषकर धातुओं (सोना, चांदी या बर्तन) को खरीदने की परंपरा है, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। यह पर्व अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
धनतेरस क्यों मनाया जाता है
धनतेरस मनाने के पीछे मुख्य रूप से दो प्रमुख पौराणिक मान्यताएं हैं। पहली और सबसे महत्वपूर्ण मान्यता यह है कि समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन ही भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इन्हें देवताओं का वैद्य और आयुर्वेद का जनक माना जाता है, इसलिए इनकी पूजा करने से आरोग्य और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। दूसरी मान्यता यह है कि यह दिन धन के देवता कुबेर और धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित है, जिनकी पूजा से घर में सुख-समृद्धि और धन-वैभव आता है। इसके अतिरिक्त, इस दिन मृत्यु के देवता यमराज के लिए भी घर के बाहर दीपदान (यम दीपक) किया जाता है, जिससे परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।
धनतेरस 2025 के लिए शुभ मुहूर्त
वर्ष 2025 में, धनतेरस का पर्व 18 अक्टूबर, शनिवार को मनाया जाएगा। त्रयोदशी तिथि 18 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगी और 19 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 51 मिनट पर समाप्त होगी। धनतेरस के दिन खरीदारी के लिए सुबह का शुभ मुहूर्त अमृत काल के रूप में देखा जा रहा है, जो सुबह 8 बजकर 50 मिनट से 10 बजकर 33 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा, अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। हालांकि, धनतेरस की पूजा का मुख्य मुहूर्त शाम को प्रदोष काल में होता है, जो 18 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 16 मिनट से रात 8 बजकर 20 मिनट तक रहेगा।
धनतेरस में किसकी पूजा और कायदे किए जाते हैं
धनतेरस पर मुख्य रूप से तीन देवताओं की पूजा की जाती है। सबसे पहले अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। इसके बाद धन और समृद्धि के लिए प्रदोष काल में माता लक्ष्मी और कुबेर देवता की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान धूप, दीप, फूल, नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं और “ॐ धन्वंतराये नमः” मंत्र का जाप किया जाता है। प्रमुख कायदों में, इस दिन सोना, चांदी, पीतल या तांबे के नए बर्तन, झाड़ू और धनिया खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। साथ ही, दीपावली से पहले घर की साफ-सफाई की जाती है और शाम को घर के मुख्य द्वार पर यमराज के लिए दीपदान किया जाता है।
भारत में धनतेरस मनाने की परंपरा
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में धनतेरस को उत्साह के साथ मनाया जाता है। सबसे प्रमुख परंपरा है इस दिन संपत्ति की खरीदारी करना। माना जाता है कि इस दिन खरीदी गई संपत्ति में तेरह गुना वृद्धि होती है, इसलिए लोग सोने-चांदी के आभूषण या सिक्के खरीदते हैं। सोना-चांदी न खरीद सकने वाले लोग पीतल या तांबे के नए बर्तन, झाड़ू और साबुत धनिया खरीदते हैं, जिसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। शाम को देवी लक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरि की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन घर के प्रवेश द्वार को दीपों और रंगोली से सजाने की परंपरा है, जो आने वाले दीपोत्सव के लिए तैयारी का संकेत देती है।
धनतेरस का पर्व केवल भौतिक धन या खरीदारी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आरोग्य, समृद्धि और लंबी आयु का संदेश देता है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में धन के साथ-साथ स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है। भगवान धन्वंतरि के आशीर्वाद से स्वास्थ्य, कुबेर देवता के आशीर्वाद से धन और मां लक्ष्मी के आशीर्वाद से सुख-समृद्धि की कामना करते हुए यह त्योहार हमें एक संतुलित और प्रकाशमय जीवन की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। यह महापर्व दीपावली के महाउत्सव का एक मंगलकारी शुभारंभ है।