लेह हिंसा: लद्दाख की राज्य दर्जे और छठी अनुसूची की मांग, एक ‘जेनरेशन-जेड क्रांति’

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Kishor Manhar
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लेह हिंसा: लद्दाख की राज्य दर्जे और छठी अनुसूची की मांग, एक ‘जेनरेशन-जेड क्रांति’

लद्दाख, भारत की एक शांत और सुरम्य भूमि, राज्य का दर्जा और भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा विस्तार की अपनी लंबे समय से लंबित मांगों को लेकर भड़के हिंसक विरोध प्रदर्शनों के कारण सुर्खियों में है। 24 सितंबर 2025 को लद्दाख की राजधानी लेह में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो उठा, जिसके कारण शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा।

हिंसा का प्रकोप और परिणाम
लेह में शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा विरोध प्रदर्शन अचानक से हिंसा में बदल गया। प्रदर्शनकारियों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यालय और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की एक वैन में आग लगा दी। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में कम से कम चार लोगों की मौत हो गई।

हिंसा से पहले, स्थानीय लोग हफ्तों से शांतिपूर्ण भूख हड़ताल पर थे। इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे सामाजिक और जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने इस घटना को “युवा पीढ़ी का आक्रोश” बताया, जिसने उन्हें सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया। उन्होंने इसे “जेनरेशन-जेड क्रांति” करार दिया।

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विरोध की पृष्ठभूमि और मुख्य कारण
यह आंदोलन लगभग पाँच वर्षों से चल रहा है और इसकी जड़ें अधूरे वादों और लद्दाख की जनजातीय आबादी (90% से अधिक) की सांस्कृतिक व आर्थिक सुरक्षा की गहरी चिंता में हैं।

प्रमुख माँगें और चिंताएँ:

राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची का विस्तार: यह सबसे महत्वपूर्ण माँग है। लद्दाख की जनजातीय संस्कृति, पर्यावरण और भूमि की सुरक्षा के लिए छठी अनुसूची के तहत स्वायत्तता की मांग की जा रही है, जो वर्तमान में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों को प्राप्त है।

केंद्र शासित प्रदेश (UT) दर्जे के बाद निराशा: वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर (विधानसभा सहित) और लद्दाख (बिना विधानसभा) में विभाजित किया गया। स्थानीय लोग पहले जम्मू-कश्मीर से अलगाव चाहते थे, लेकिन यूटी दर्जे के बाद उन्हें लगा कि उनकी स्वायत्त हिल डेवलपमेंट काउंसिल की शक्तियां कम हो गई हैं।

आर्थिक और प्रशासनिक मुद्दे: नौकरियों की कमी, भर्ती प्रक्रिया में देरी, और बाहरी प्रभावों से भूमि व वन संसाधनों पर बढ़ता खतरा स्थानीय लोगों के आक्रोश का कारण बना।

संगठनों का चार-सूत्री एजेंडा:

लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) चार मुख्य मांगों पर जोर दे रहे हैं:

1. राज्य का दर्जा

2. संविधान की छठी अनुसूची का विस्तार

3. लेह-कारगिल के लिए अलग लोकसभा सीटें

4. रोजगार में आरक्षण

छठी अनुसूची: लद्दाख के लिए क्यों आवश्यक?

भारतीय संविधान की छठी अनुसूची का उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन का प्रावधान करना है। यह स्वायत्त जिला परिषदों के माध्यम से इन क्षेत्रों को स्वायत्तता देती है, जिससे वे भूमि, वन और स्थानीय शासन पर कानून बना सकते हैं।

लद्दाख में अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग 97% है (जांस्कर में 99.16% तक), जो छठी अनुसूची के विस्तार को एक आवश्यक सुरक्षा कवच बनाती है। इसका उद्देश्य आदिवासी अधिकारों, रीति-रिवाजों और स्वशासन की रक्षा करना है।

विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व: सोनम वांगचुक
लद्दाख के इस आंदोलन का नेतृत्व लेह एपेक्स बॉडी (LAB) कर रही है, जो विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक समूहों का एक साझा मंच है।

सोनम वांगचुक: इंजीनियर, नवप्रवर्तक और कार्यकर्ता

वह इस आंदोलन के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक हैं।

वह एक प्रसिद्ध इंजीनियर, नवप्रवर्तक और जलवायु कार्यकर्ता हैं, जिन्हें टिकाऊ उत्पादों के लिए जाना जाता है।

उन्हें वर्ष 2009 की हिंदी फिल्म ‘3 इडियट्स’ में आमिर खान के किरदार ‘रैंचॉड तासम’ को प्रेरित करने के लिए भी जाना जाता है।

वर्ष 2018 में, उन्हें लद्दाखी युवाओं के लिए शिक्षा सुधार और समुदाय-आधारित विकास के उनके कार्यों के लिए रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

वांगचुक पर्यावरण, शिक्षा और स्थानीय शासन पर काम करते हैं, और लद्दाख की सांस्कृतिक संरक्षण के प्रतीक हैं।

उन्होंने अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भूख हड़ताल का नेतृत्व किया, ताकि केंद्र सरकार पर लद्दाख की लंबित मांगों पर परिणामोन्मुखी वार्ता के लिए दबाव बनाया जा सके।

लद्दाख में इस हिंसा के कारण स्थानीय लोगों और केंद्र सरकार के बीच विश्वास का संकट गहरा गया है। यह देखना बाकी है कि केंद्र सरकार इस “जेनरेशन-जेड क्रांति” की मांगों पर क्या प्रतिक्रिया देती है और क्षेत्र में शांति और सुरक्षा कैसे बहाल की जाती है।

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