संविधान संवाद सुनील भारद्वाज की कलम से

आज मेरी मुलाकात हुई,
भारत के संविधान से
मेरे स्वाभिमान से,
बहुत ही सम्मान से,

मैंने पूछा – आप कौन ?
उसने कहा – तेरी आन-बान और शान,
मैं हूं “भारत का संविधान,”
कई दशकों से साथ हूं तेरे
फिर भी हो तुम अब तक
मुझसे अंजान,
हरदम मैं तुझसे मिलने आता रहा हूं
और हर वक्त आवाज तुझे लगता हूं
फिर भी बैठा है मौन,
और मुझसे पूछता है – तू कौन ?

मैंने फिर पूछा – मुझसे मिलने आते रहे हो कब ?
उसने पलट कर पूछा – तेरी उमर क्या है ?
मैने कहा – पचास,
तो उसने कहा – इतनी उमर में
तेरे पास
क्या है ऐसा खास ?
मैंने कहा – सरकारी नौकरी, गाड़ी, बंगला, भरा पूरा परिवार,
और आनंद ही आनंद है मेरे पास,
इसके वावजूद भी पूछता है
कि क्या है खास ?

उसने फिर पूछा – कि तुम किस वर्ग से आते हो ?
आरक्षित या अनारक्षित ?
मैंने कहा कि मैं आरक्षित वर्ग से आता हूं,
मैं इस देश का मूल निवासी हूं
ये खुल कर तुम्हें बताता हूं,
पर ये बात पूछ कर बार-बार
तू मुझको क्यों सताता है,
जल्दी से बता
तू मुझसे मिलने कब आता है ?

उसने कहा – धीरज रख बताता हूं
तुमसे मिलने मैं कब-कब आता हूँ
ये सिलसिलेवार सुनता हूं,
तो सुन –
मैं तुझसे पहली बार मिलने तब आया
जब तुम्हारी मां ने अनुच्छेद 42 के तहत
प्रसूति सहायता का लाभ उठाया,
फिर अनुच्छेद 47 के तहत,
तुझको पूरक पोषण आहार दिलाया
तुम छः साल के हुए थे तब मैं
स्कूल में भी आया
जब तूने अनुच्छेद 45 (अनुच्छेद 21क) के तहत,
निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का लाभ उठाया,
कॉलेज में भी तुझसे मिला अनुच्छेद 15(4) के तहत
और लाभ ले रहा है तू
विगत पच्चीस वर्षों से,
अनुच्छेद 16(4) के तहत,
अनुच्छेद 39 के तहत
मैं तेरी गरीबी मिटाता रहा
और अनुच्छेद 19 के तहत,
व्यवसाय, संघ, अबाध संचरण
और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दिलाता रहा,
अनुच्छेद 15 से सब भेद मिटाता
और प्राणों को संरक्षण
अनुच्छेद 21 से दिलाता,
अनुच्छेद 17 का संदेश
अस्पृश्यता को जड़ से मिटाता है,
अनुच्छेद 51क(ज) से तू वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाता है,
अनुच्छेद 13 से तुमको
मिला है अधिकार –
रूढ़ी, पाखंड, अंधविश्वास मिटाने का,
अनुच्छेद 326 से हक मिला है तुम्हें अपना राजा बनाने का ।

कहो तो तुझको याद दिलाऊं
पालने से श्मशान तक ,
जन्म से मृत्यु तक
और सुबह से शाम तक
मैं हर क्षण होता हूं तुम्हारे साथ
फिर भी तू पूछता है मुझसे
कब-कब होती है हमारी मुलाकात।

संविधान की ये बातें सुनकर
मैं अभिभूत हुआ
उनके एहसानों का
वशीभूत हुआ
लोक कल्याण से सराबोर हुआ
संविधान के प्रति आतुर
और भाव विभोर हुआ,
अब तो बस मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि –
मुझे इश्क हो गया है
“भारत का संविधान” से यारों,
अब फर्क नहीं पड़ेगा
कि लोग मुझे पागल कहें या दीवाना,
मेरा तो मकसद है बन गया अब
संविधान को पढ़ना और पढ़ाना, समझना और समझाना,
और उसके तह तक जाना ।

सर्वोच्च नियमावली, सर्वोपरि, सर्वमान्य, सर्वव्यापक, और अनिवार्य है संविधान,
दुनिया कहती है उसे विश्वश्रेष्ठ संविधान,
ठीक-ठीक पालन करे उसका
प्रत्येक नागरिक और सरकार
तो फिर से बने जाएगा
देश मेरा सर्वश्रेष्ठ और महान ।

जय भीम! जय भारत! जय संविधान !