सारंगढ़ के जायसवाल(जेडी) ढ़ाबा में खुलेआम परोसी जाती है शराब…ढ़ाबा या बिना लाइसेंसी बार? गांधी जयंती पर भी डंके की चोट में बेची और पिलाई गयी “जाम”खुलेआम….

रायगढ़। नवघोषित सारंगढ़ जिला में जहां एक ओर नियमो को मानने वाले लोग हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों को सिर्फ सिक्के की खनक ही सुनाई देती है..! उस खनक के सामने न तो उन्हें नियमो की परवाह है ना ही कानून का डर. सबसे बड़ी सोचने की बात है कि आखिर इन पैसों के भूखे संचालको को यह संरक्षण मिल कहाँ से रहा है। पान,पानी की नगरी में कुछ लोग शराब की अवैध नदी बहा रहे हैं फिर भी कानून का हाथ इनके गिरेबान तक पहुंच क्यों नही रहा है,एक चिंतनीय विषय है।

जयसवाल ढ़ाबा- ढ़ाबा या बार जहां होता है खुलेआम शराब का व्यापार-

क्या हम महापुरुषों की जयंती का भी सम्मान नही कर सकते? क्या सिर्फ एक दिन के लिए कानून का पालन नही कर सकते? क्या एक दिन के लिए शराब दुकानदार शराब की बिक्री पूरी तरह से बंद नहीं कर सकते….? क्या एक दिन के लिए शराब पीने वाले शराब पीना नहीं छोड़ सकते….? क्या एक दिन के लिए पुलिस और आबकारी विभाग और ज्यादा ईमानदारी से काम नहीं कर सकते….?…… इन सभी सवालों का जवाब चंद लोगों के कारण ना है…। क्योंकि मानवता की कमी और पैसे की लालच ने इंसान को अंधा कर दिया है। जिसका जीता-जागता उदाहरण रायगढ़ रोड स्थित जायसवाल ढ़ाबा है। जहां खुलेआम 2 अक्टूबर को शुष्क दिवस के दिन दोगुने रेट में शराब बेचा और पिलाया गया। जो कि आबकारी एक्ट, और गैरकानूनी धाराओं सहित अन्य कानून का उलंघन है।

मना करने गये महिला समेत पत्रकार को दी गयी अश्लील जातिगत गाली और किया गया हाथापाई-

ड्राय डे के दिन शराब परोसकर ढ़ाबा में बकायदा शराब पिलाने की बात की शिकायत पर पत्रकार नुवेन अनंत अपने महिला साथी के साथ जब ढ़ाबा पहुंचे और गांधी जयंती के दिन शराब न बेचने की बात क्या कहे ढ़ाबा संचालक बौखला से गये। और थाना में दी गयी सूचना के आधार पर माने तो अपने 6-7 गुर्गों को बुलाकर मारपीट ,अश्लील और जातिगत गाली-गलौच भी किये। जिसकी लिखित सूचना उन्होंने तत्काल थाने में दिये हैं।

जंगल/ग्रामीण इलाकों में शराब पकड़ने वाली आबकारी/ पुलिस की सारंगढ़ से सटे ढाबों में पुलिसिया कार्यवाही क्यों नही-

सबसे गम्भीर चिंतन का विषय यह है कि सुदूर ग्रामीण अंचल में 3 से 4 लीटर शराब तक पर अपने मुखबिर तंत्र के दम पर कार्यवाही करने वाली सारंगढ़ पुलिस की मुखबिरी सारंगढ़ से सटे ढाबों पर क्यों काम नही करती? आखिर क्या है इन जैसे ढाबे संचालको के पास की मुखबिरी तंत्र का सिग्नल यहां आते ही फैल हो जाता है- राजनीतिक पहुंच या गुलाबी गुलदस्ता ? संवेदनशील थाना प्रभारी अमित शुक्ला को अब खुद संज्ञान लेकर कार्यवाही करनी पड़ेगी क्योंकि उनके मुखबिर तंत्र शायद इन जैसे ढाबों की सूचना पहुंचाने में अशक्षम हैं ?